ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आप
फिर मुझे रोइएगा मेरे ब'अद
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क्यूँ हसीनों की आँखों से न लड़े
हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
रहते काबे में अकेले क्या हम
तुम अगर दो न पैरहन अपना
तुम न आसान को आसाँ समझो
जीतेंगे न हम से बाज़ी-ए-इश्क़
अपने क़ासिद को सबा बाँधते हैं