तुम न आसान को आसाँ समझो
वर्ना मुश्किल मिरी मुश्किल तो नहीं
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हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
दिल उसे दे दिया 'सख़ी' ही तो है
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
मुंकिर-ए-बुत है ये जाहिल तो नहीं
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
बाम पर आता है हमारा चाँद
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
एक दो तीन चार पाँच छे सात
रहते काबे में अकेले क्या हम
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए