तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
ईजाद होगी नर्गिस-ए-बीमार की जगह
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कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
क़ासिद तिरे बार बार आए
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
न छोड़ा हिज्र में भी ख़ाना-ए-तन
इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
क्यूँ हसीनों की आँखों से न लड़े
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
तुम अगर दो न पैरहन अपना
शैख़-जी बुत की बुराई कीजे
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है