सीने से हमारा दिल न ले जाओ
छुड़वाते हो क्यूँ वतन किसी का
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Allama Iqbal
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Anwar Masood
Wasi Shah
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दर्द को गुर्दा तड़पने को जिगर
यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
था हिना से जो शोख़ मेरा ख़ूँ
चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
क़ाफ़िला जाता है साग़र की तरफ़ रिंदों का
मिरे लाशे को कांधा दे के बोले