न छोड़ा हिज्र में भी ख़ाना-ए-तन
रगड़वाएगी कब तक एड़ियाँ रूह
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दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
रहते काबे में अकेले क्या हम
हम उन से आज का शिकवा करेंगे
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
'सख़ी' बैठिए हट के कुछ उस के दर से
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आप
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
गुफ़्तुगू हो दबी ज़बान बहुत