मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
देख मुझ से न आसमान बिगड़
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क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर
हमा-तन हो गए हैं आईना
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
रुख़ हाथ पे रक्खा न करो वक़्त-ए-तकल्लुम
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
न छोड़ा हिज्र में भी ख़ाना-ए-तन
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
क्यूँ हसीनों की आँखों से न लड़े
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है