ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
उँगलियाँ चूसीं तो ज़ौक़-ए-नैशकर पैदा हुआ
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बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
सीने से हमारा दिल न ले जाओ
आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
पहलू में बैठ कर वो पाते क्या
कअ'बे में सख़्त-कलामी सुन ली
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी