ख़ुदा के पास क्या जाएँगे ज़ाहिद
गुनाह-गारों से जब ये बार पाएँ
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हैफ़ साबित है जेब ने दामन
क़ासिद तिरे बार बार आए
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
पहलू में बैठ कर वो पाते क्या
रुख़ पर है मलाल आज कैसा
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
इन को नफ़रत इसे क्या कहते हैं
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई है
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं