कभी पहुँचेगा दिल उन उँगलियों तक
नगीने की तरह ख़ातिम में जड़ के
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दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
जिस के घर जाते न थे हज़रत-ए-दिल
अजी फेंको रक़ीब का नामा
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की