जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
आएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
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पहलू में बैठ कर वो पाते क्या
कभी पहुँचेगा दिल उन उँगलियों तक
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई है
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
हम उन से आज का शिकवा करेंगे
की ख़िताबत को गर ख़ुदा समझा
ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात
अपने क़ासिद को सबा बाँधते हैं
दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म