दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
इन के रहने के हैं मकान बहुत
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बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
रहते काबे में अकेले क्या हम
देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है
रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई
दिल उसे दे दिया 'सख़ी' ही तो है
बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ
है चमन में रहम गुलचीं को न कुछ सय्याद को