देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
आईना उन के मुँह चढ़ा है आज
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पूजना बुत का है ये क्या मज़मून
बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया
तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ
रहते काबे में अकेले क्या हम
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
था मिरा नाख़ुन-ए-तराशीदा
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे
दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का
यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए
ख़ाल और रुख़ से किस को दूँ निस्बत
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है