बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
तुझ में है ढंग यार के लब का
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(421) Peoples Rate This
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
शैख़-जी बुत की बुराई कीजे
ये तो मालूम कि फिर आइएगा
ख़ाल और रुख़ से किस को दूँ निस्बत
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
रहते काबे में अकेले क्या हम
दुल्हन भी अगर बन के आएगी रात
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
बाम पर आता है हमारा चाँद