बहुत ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में दिन चढ़ गया
उठो सोने वालो फिर आएगी रात
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
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माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
नक़्द-ए-दिल का बड़ा तक़ाज़ा है
ज़िंदगी तक मिरी हँस लीजिए आप
नज़'अ के दम भी उन्हें हिचकी न आएगी कभी
अजी फेंको रक़ीब का नामा
था हिना से जो शोख़ मेरा ख़ूँ
न बचपन में कहो हम को कड़ी बात
चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़
बोसा हर वक़्त रुख़ का लेता है
तीस दिन यार अब न आएगा
'सख़ी' से छूट कर जाएँगे घर आप
शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है