बात करने में होंट लड़ते हैं
ऐसे तकरार का ख़ुदा-हाफ़िज़
Faiz Ahmad Faiz
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हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
कभी पहुँचेगा दिल उन उँगलियों तक
देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
हम उन से आज का शिकवा करेंगे
वो आशिक़ हैं कि मरने पर हमारे
अजी फेंको रक़ीब का नामा
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
इस तरफ़ बज़्म में हम थे वो थे
रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब
दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम