अजी फेंको रक़ीब का नामा
न इबारत भली न अच्छा ख़त
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इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
एक दो तीन चार पाँच छे सात
हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी
बद्र और महर दो हैं नाम उन के
बाम पर आता है हमारा चाँद
जिस के घर जाते न थे हज़रत-ए-दिल
रंगत उस रुख़ की गुल ने पाई है
हम उन से आज का शिकवा करेंगे
आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
माह-ए-नौ पर्दा-ए-सहाब में है
मैं तुझे फिर ज़मीं दिखाऊँगा
क़ब्र में अब किसी का ध्यान नहीं