उन की चुटकी में दिल न मल जाता
उन की चुटकी में दिल न मल जाता
तो ये सिक्का हमारा चल जाता
शम्अ था यार जो पिघल जाता
और मैं परवाना था जो जल जाता
क्या कहें सैर को वो गुल न गया
बाग़ का रंग ही बदल जाता
गोर ही से न बन पड़ी वर्ना
अज़दहा तो हमें निगल जाता
अब तो पिस्ताँ निकालिए साहब
इतने सिन में अनार फल जाता
सदमे घेरे हैं हिज्र में दम को
साँस पाता तो ये निगल जाता
क्या गिराता 'सख़ी' ये चर्ख़ मुझे
या-'अली' कहता और सँभल जाता
(449) Peoples Rate This