Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_17403994d36f6aff128f9ab515c56e5c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
क़ासिद तिरे बार बार आए - सख़ी लख़नवी कविता - Darsaal

क़ासिद तिरे बार बार आए

क़ासिद तिरे बार बार आए

एक हफ़्ते में तीन चार आए

क़ातिल पे जो सर को वार आए

बार-ए-तन-ए-ज़ार उतार आए

आशुफ़्तगी हो नसीब-ए-दुश्मन

तुम ज़ुल्फ़ न क्यूँ सँवार आए

अब की जो न छूटे फ़स्ल-ए-गुल में

फिर देखिए कब बहार आए

दिल में नहीं उस की कुछ कुदूरत

आईना पे क्या ग़ुबार आए

झोली रही अपनी गुल से ख़ाली

दामन में उलझ के ख़ार आए

गुल खाना मिरा तप-ए-अलम से

बुलबुल जो सुने बुख़ार आए

आया जो 'सख़ी' मह-ए-मोहर्रम

हम बज़्म में अश्क-बार आए

(429) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sakhi Lakhnvi. is written by Sakhi Lakhnvi. Complete Poem in Hindi by Sakhi Lakhnvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.