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पहलू में बैठ कर वो पाते क्या - सख़ी लख़नवी कविता - Darsaal

पहलू में बैठ कर वो पाते क्या

पहलू में बैठ कर वो पाते क्या

दिल तो था ही नहीं चुराते क्या

हिज्र में ग़म भी एक नेमत है

ये न होता तो आज खाते क्या

मुर्ग़-ए-दिल ही का कुछ रहा मज़कूरा

और बे-पर की वाँ उड़ाते क्या

राह की छेड़-छाड़ ख़ूब नहीं

वो बिगड़ता तो हम बनाते क्या

सदमा हासिल हुआ अलम लाए

और कूचे से उस के लाते क्या

शैख़-जी कहते हैं ग़िना को हराम

उन से पूछो तो हैं ये गाते क्या

लाग़र ही से कफ़न में था भी मैं

मेरी मय्यत को वो उठाते क्या

ख़ाक उस कूचे की न ला रखते

तो 'सख़ी' क़ब्र में बिछाते क्या

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In Hindi By Famous Poet Sakhi Lakhnvi. is written by Sakhi Lakhnvi. Complete Poem in Hindi by Sakhi Lakhnvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.