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निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से - सख़ी लख़नवी कविता - Darsaal

निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से

निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से

लाएँ तश्बीह-ए-रुख़ कहाँ से

मिस्सी की सिफ़त बयाँ न होगी

सौसन भी कहे जो सौ ज़बाँ से

तश्बीह जो माँग की न हाथ आए

लाऊँ मैं माँग कहकशाँ से

सौदा है जो बुलबुलों को गुल का

तिनके चुन लाएँ आशियाँ से

ये हारिज-ए-शब वो माने-ए-रोज़

दरबाँ से लड़ूँ कि पासबाँ से

जीतेंगे न हम से बाज़ी-ए-इश्क़

अग़्यार के पिट पड़ेंगे पाँसे

है क़द्र-ए-सुख़न 'सख़ी' को हासिल

याँ के हर पीर और जवाँ से

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In Hindi By Famous Poet Sakhi Lakhnvi. is written by Sakhi Lakhnvi. Complete Poem in Hindi by Sakhi Lakhnvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.