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जी जाए मगर न वो परी जाए - सख़ी लख़नवी कविता - Darsaal

जी जाए मगर न वो परी जाए

जी जाए मगर न वो परी जाए

यारब न हमारी दिल-लगी जाए

दिल हिज्र में जाए या कि जी जाए

जिस का जी चाहे वो अभी जाए

इस गिल का न वस्ल हो न जी जाए

क्यूँकि मेरे दिल की बे-कली जाए

तुम लाल-ए-लब अपने गर दिखाओ

फिर सू-ए-यमन न जौहरी जाए

इस ग़ुंचा-दहन की बू न लाए

दिखलाए न मुँह सबा चली जाए

सौग़ात की तरह पेश-ए-मजनूँ

बेड़ी और मेरी हथकड़ी जाए

साबित है जब पहाड़-ए-वहशत

जब तक दामन हमारा सी जाए

ग़ैरों को तो मय पिलाए साक़ी

मैं माँगूँ तो साफ़ सुन के पी जाए

हम-राह हो परवरिश-ए-अली भी

याँ से जो कर्बला 'सख़ी' जाए

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In Hindi By Famous Poet Sakhi Lakhnvi. is written by Sakhi Lakhnvi. Complete Poem in Hindi by Sakhi Lakhnvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.