घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के
आज साग़र शराब का छलके
सोग में मेरे मेहंदी के बदले
लाल करते हैं हाथ मल मल के
छोड़िए अब तवाफ़ का'बा का
दैर की गर्द ढूँढिए चल के
दिल है पत्थर सा उन का भारी है
वर्ना हैं कान के बहुत हल्के
तलवा खुजला रहा है फिर मेरा
याद करते हैं ख़ार जंगल के
आज मुर्दा 'सख़ी' का रोएगा
इस जनाज़े को देखना चल के
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