जाँ-ब-लब लम्हा-ए-तस्कीं मिरी क़िस्मत है 'शमीम'
बे-ख़ुदी फिर मुझे दीवाना बनाती क्यूँ है
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राह में कोई खड़ा हो जैसे
रौशनी दर पे खड़ी मुझ को बुलाती क्यूँ है
रात हिस्सा है मिरी उम्र का जी लेने दे
हर्फ़-ए-तहज्जी सीख रहा हूँ
गो तिरे शहर में भी रात रहे