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निराली रातें - सज्जाद ज़हीर कविता - Darsaal

निराली रातें

काली, जगमगाती, निराली रातें

रस भरी, मदमाती रातें

रात की रानी ख़ुश्बू से भरी

तारों की मद्धम नूरानी छाँव में

हल्की ठंडी रातें

बैसाखी हवाओं

''सारंगी की लम्बी अलकसी सिसकियों''

प्यार के राज़ों से बोझल

कहानी रातें

कहाँ खो गईं हैं या-रब?

खो जाएँ

तो फिर खो जाएँ

लेकिन वो मन-मोहक घड़ियाँ

ख़ून में जैसे घुल सी गई हैं

वो लड़खड़ाते, अधूरे, ना-मुकम्मल जुमले

अब भी साफ़ सुनाई देते हैं

अब्रुओं, पलकों माथे की शिकनों के

बाँके तिरछे पल पल बदलते ज़ावीए

जो क्या क्या कुछ कहते थे

दिखाई देते हैं

वो नित-नई अनोखी बे-इंतिहा ख़ुशियाँ

मौजूद भी हैं ज़िंदा भी

लेकिन दर्द-ओ-अलम की मौजें बन कर

दिल के गोशे गोशे में फैल गई हैं

ये तो सुना है ज़हर कभी अमृत बन जाता है

लेकिन जब अमृत ख़ुद ज़हरीला हो जाए

फिर आख़िर कोई कैसे जिए?

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Zaheer. is written by Sajjad Zaheer. Complete Poem in Hindi by Sajjad Zaheer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.