Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_17ca54847b392706b228f4e810a4e267, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कभी कभी - सज्जाद ज़हीर कविता - Darsaal

कभी कभी

कभी कभी बेहद डर लगता है

कि दोस्ती के सब रुपहले रिश्ते

प्यार के सारे सुनहरे बंधन

सूखी टहनियों की तरह

चटख़ कर टूट न जाएँ

आँखें खुलें, बंद हों देखें

लेकिन बातें करना छोड़ दें

हाथ काम करें

उँगलियाँ दुनिया भर के क़ज़िए लिक्खें

मगर फूल जैसे बच्चों के

डगमगाते छोटे छोटे पैरों को

सहारा देना भूल जाएँ

और सुहानी शबनमी रातों में

जब रौशनियाँ गुल हो जाएँ

तारे मोतिया चमेली की तरह महकें

प्रीत की रीत

निभाई न जाए

दिलों में कठोरता घर कर ले

मन के चंचल सोते सूख जाएँ

यही मौत है!

उस दूसरी से

बहुत ज़ियादा बुरी

जिस पर सब आँसू बहाते हैं

अर्थी उठती है

चिता सुलगती है

क़ब्रों पर फूल चढ़ाए जाते हैं

चराग़ जुलते हैं

लेकिन ये, ये तो

तन्हाई के भयानक मक़बरे हैं

दाइमी क़ैद है

जिस के गोल गुम्बद से

अपनी चीख़ों की भी

बाज़-गश्त नहीं आती

कभी कभी बेहद डर लगता है

(604) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sajjad Zaheer. is written by Sajjad Zaheer. Complete Poem in Hindi by Sajjad Zaheer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.