हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है
हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है
ये शे'र और ये ग़ज़लें तो बस बहाना है
तुम्हारे हाथ का पत्थर कोई नया तो नहीं
जबीं से संग का रिश्ता बहुत पुराना है
हो तेरे हुस्न का जादू कि मेरा जोश-ए-तलब
नशा ये दोनों का इक दिन उतर ही जाना है
वो मुश्त-ए-ख़ाक-बदन हो कि जान की ख़ुशबू
हर एक चीज़ को इक दिन बिखर ही जाना है
है जज़्ब-ए-शौक़ बराबर मगर ब-फैज़-ए-अना
न हम ही जाएँगे उन तक न उन को आना है
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