ज़हर का सफ़र
मैं इंसान हूँ
मैं ने इक नागिन को डसा
उस को अपना ज़हर दिया
ऐसा ज़हर कि जिस का मंतर कोई नहीं
उस की रग रग में चिंगारी
उस के लहू में आग
मेरे ज़हर में नशा भी है
ऐसा नशा जिस का कोई ख़ुमार नहीं
वो नागिन अब मस्त नशे में झूमेगी
बहक बहक कर हर-सू मुझ को ढूँडेगी
उस की ज़बाँ बाहर को निकली
उस के मुँह में झाग
आज है लोगो पूरन-माशी
ज़ख़्मी नागिन ज़हर उगलती
इंसानों को डस के उन के ख़ून में अपना ज़हर भरेगी
ऐसा ज़हर कि जिस का मंतर कोई नहीं
उन की रग रग में चिंगारी
उन के लहू में आग
उस की ज़बाँ बाहर को निकली
उस के मुँह में झाग
मुझ को डस कर मेरे ख़ून को वापस मेरा ज़हर करेगी
मेरी रग रग में चिंगारी
मेरे लहू में आग
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