Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5e1ee827bc3907593cf973033e6e7828, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह - सज्जाद बाक़र रिज़वी कविता - Darsaal

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

बरस पड़ा मिरे आँगन में चाँदनी की तरह

वो जिस के वास्ते इक हर्फ़-ए-मुद्दआ' न मिला

उतर गया मिरे सीने में आगही की तरह

नज़र बचा के जिसे देखते थे मेरे हरीफ़

समा गया मिरी आँखों में रौशनी की तरह

हवा पे जिस के क़दम हैं मिसाल-ए-निगहत-ए-गुल

असीर है मिरे शे'रों में नग़्मगी की तरह

मिरा ग़ज़ाल कि वहशत थी जिस को साए से

लिपट गया मिरे सीने से आदमी की तरह

मिरी निगाह को तू अपने आईने में भी देख

जमी है तेरे लबों पर शगुफ़्तगी की तरह

कहाँ के शेर कहाँ की ग़ज़ल ये ज़ेहन की रौ

बिखर गई मिरे काग़ज़ पे शाइरी की तरह

ज़बाँ खुली है तो दिल फट पड़ा है सूरत-ए-गुल

वगर्ना हम भी थे ग़म आप में कली की तरह

लहद में ज़ेहन की मदफ़ून पैकर-ए-औहाम

मिरी रगों में मचलते हैं ज़िंदगी की तरह

ये धूप-छाँव है दुनिया की ख़ुद मिरा साया

मिरे क़रीब से गुज़रा है अजनबी की तरह

ग़म-ए-ज़माना से दिल-तंग थे बहुत 'बाक़र'

सिमट के रह गए एहसास-ए-बेकसी की तरह

(528) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sajjad Baqar Rizvi. is written by Sajjad Baqar Rizvi. Complete Poem in Hindi by Sajjad Baqar Rizvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.