उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था
उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था
वो बा-वफ़ा हो क्या जो कभी बेवफ़ा न था
दिल उन से मिल गया है जो मिलते नहीं कभी
जो मिल गए हैं उन से कभी दिल मिला न था
बाँधा पर-ए-शिकस्ता ने रिश्ता ज़मीं के साथ
उड़ने का शौक़ भी मुझे हद से सिवा न था
मंज़िल-ए-वफ़ा की थी हद-ए-कौनैन से परे
क्या दिल-गिरफ़्तगाँ के लिए रास्ता न था
फिरती थी ले के शोरिश-ए-दिल कू-ब-कू हमें
मंज़िल मिली तो शोरिश-ए-दिल का पता न था
तूफ़ान-ए-बहर-ए-ज़ीस्त में ख़स की मिसाल मैं
पानी में बह रहा था मगर डूबता न था
हाँ जादा-ए-हयात में तेरी गली भी थी
हाँ ये भी मेरी सुस्त-रवी का बहाना था
दिल ऐसे फिर गए कि मुक़ाबिल वो आ गया
जो मेरी सम्त मुड़ के कभी देखता न था
हाँ वो भी दिन थे जब ग़म-ए-शीरीं था बे-सुतूँ
पर कोई कोह-ए-तल्ख़ी-ए-जाँ काटता न था
अब आह भी भरें तो चटख़्ता है जा-ब-जा
संग-ए-गिरान-ए-ग़म से जो दिल टूटता न था
ज़ंजीर की सदा से गरेबाँ के चाक तक
मेरे भी मश्ग़ले थे मैं बे-दस्त-ओ-पा न था
सर ने मिरे दिया तुझे आशुफ़्तगी का नाम
तुझ को तो कोई शोरिश-ए-ग़म पूछता न था
'बाक़र' ख़ुदी को छोड़ चले किस के वास्ते
तुम जिस को पूजते थे वो काफ़िर ख़ुदा न था
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