तिरे तग़ाफ़ुल से है शिकायत न अपने मिटने का कोई ग़म है
तिरे तग़ाफ़ुल से है शिकायत न अपने मिटने का कोई ग़म है
ये सब ब-ज़ाहिर बजा है लेकिन ये आँख क्यूँ आज मेरी नम है
नई उमंगों को साथ ले कर रवाँ हूँ फिर जादा-ए-वफ़ा पर
मगर है एहसास-ए-ना-मुरादी कि सहमा सहमा सा हर-क़दम है
मिरी उम्मीदों को रौंद कर अब मिरी ख़ुशी की है तुम को पर्वा
ये क्या नया रूप तुम ने धारा ये क्या कोई नित-नया भरम है
तुम्हें वो लम्हे तो याद होंगे कि जब तुम्हें याद थे ये फ़िक़रे
तुम्हें मिरे सर का वास्ता है तुम्हें मिरी जान की क़सम है
वो मेहरबाँ क्यूँ हुए हैं मुझे पर वो पूछते हैं तो कह दो 'नय्यर'
हुज़ूर ज़िंदा हूँ जी रहा हूँ बड़ी नवाज़िश बड़ा करम है
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