हासिल-ए-ज़ीस्त इश्क़ ही तो नहीं
चश्म-ओ-अबरू ही ज़िंदगी तो नहीं
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग-ओ-चश्म-ए-सेहर-अंदाज़
ये बहुत कुछ हैं पर यही तो नहीं
मेरे लब तक तिरे तग़ाफ़ुल की
बात आई मगर कही तो नहीं
आप नाराज़ हो गए इतना
ये कोई ऐसी बात भी तो नहीं
कट ही जाएगी ये भी ऐ 'बाक़र'
हिज्र की रात दाइमी तो नहीं