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है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ - सज्जाद बाक़र रिज़वी कविता - Darsaal

है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ

है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ

ज़र दाग़-ए-दिल का सवाल है कोई नक़्द-ए-जाँ हो तो ले के आ

रही ये फ़ज़ा तो जिएँगे क्या कोई अब बिना-ए-दिगर उठा

कोई हो ज़मीं तो निकाल उसे कोई आसमाँ हो तो ले के आ

जो हो ज़ौक़-ए-दर्द का ये समाँ तो उछाल दे कोई आसमाँ

तिरे दाग़-ए-दिल मह-ओ-मेहर में कहीं कहकशाँ हो तो ले के आ

ये है शाम मौसम-ए-दर्द की ये है सुब्ह चेहरा-ए-ज़र्द की

है बहार पर ग़म-ए-ज़िंदगी कोई दिल-ख़िज़ाँ हो तो ले के आ

ये सफ़र है मंज़िल-ए-शौक़ का कोई हम-सफ़र कोई हम-रही

किसी दिल-शिकस्ता को साथ ले कोई सरगिराँ हो तो ले के आ

यूँही अपने आप से गुफ़्तुगू जो रही तो फिर न रहेगा तू

कोई हम-ख़याल तलाश कर कोई हम-ज़बाँ हो तो ले के आ

ज़रा ख़ुद से 'बाक़र'-ए-बे-नवा तू निकल कि तय हो मोआ'मला

इन्हें मिल ये लोग हैं अहल-ए-दिल ग़म-ए-राएगाँ हो तो ले के आ

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Baqar Rizvi. is written by Sajjad Baqar Rizvi. Complete Poem in Hindi by Sajjad Baqar Rizvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.