'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो
'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो
छोड़ो कुछ और बात करो दर्द कम तो हो
ऐ कुश्ता-ए-ख़ुलूस-ए-मुहब्बत ब-कार-बाश
लब पर शगुफ़्तगी न सही आँख नम तो हो
हर दम रहे हदीस-ए-मआ'नी से हम को काम
ज़िक्र-ए-ख़ुदा अगर नहीं ज़िक्र-ए-सनम तो हो
कुछ तो पय-ए-शिकस्त-ए-सुकूत-ए-शब-ए-अलम
गिर्या सही फ़ुग़ाँ सही कुछ दम-ब-दम तो हो
चश्म-ए-ग़ज़ाल-ओ-हुस्न-ए-ग़ज़ल का बयाँ रहे
कुछ ऐसी बात जो पै-ए-तस्कीन-ए-ग़म तो हो
क़ानून-ए-बाग़-बानी-ए-सहरा तो लिख चुके
उन्वान-ए-ज़ीस्त भी किसी सूरत रक़म तो हो
इक उम्र तू ने टूटे प्यालों पे काट दी
'बाक़र' पिए शराब कोई जाम-ए-जम तो हो
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