अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है
अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है
जीने के लिए शोरिश-ए-दुनिया भी बहुत है
अब सर्द-हवा शो'ला-ए-जाँ सोज़-ए-जुनूँ भी
अब गर्मी-ए-हुस्न-ए-रुख़-ए-ज़ेबा भी बहुत है
ख़ुश-क़ामती-ए-सर्व का चर्चा है ग़नीमत
अब तज़किरा-ए-नर्गिस-ओ-लाला भी बहुत है
तुम कौन से थे ऐसे सज़ा-वार-ए-इनायत
वो पूछ रहे हैं तुम्हें इतना भी बहुत है
या तल्ख़ी-ए-मय ही थी जवाब-ए-ग़म-ए-दुनिया
या ज़िक्र-ए-मय-ओ-साग़र-ओ-मीना भी बहुत है
या गर्दिश-ए-दौराँ को भी ख़ातिर में न लाते
या अब किसी उम्मीद पे जीना भी बहुत है
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