Ghazals of Sajjad Baqar Rizvi (page 2)
नाम | सज्जाद बाक़र रिज़वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sajjad Baqar Rizvi |
जन्म की तारीख | 1928 |
मौत की तिथि | 1993 |
जन्म स्थान | Karachi |
जुर्म-ए-इज़हार-ए-तमन्ना आँख के सर आ गया
जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं
इश्क़ तो सारी उम्र का इक पेशा निकला
इस दिल को क्या कहें कि जिधर था उधर न था
हम राज़-ए-गिरफ़्तारी-ए-दिल जान गए हैं
हो दिल-लगी में भी दिल की लगी तो अच्छा है
हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया
हासिल-ए-ज़ीस्त इश्क़ ही तो नहीं
हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला
है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ
हाल-ए-दिल कुछ जो सर-ए-बज़्म कहा है मैं ने
घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है
गलियाँ झाकीं सड़कें छानीं दिल की वहशत कम न हुई
फ़रेब था अक़्ल-ओ-आगही का कि मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र का धोका
दुनिया दुनिया सैर सफ़र थी शौक़ की राह तमाम हुई
दिल की बिसात पे शाह प्यादे कितनी बार उतारोगे
दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ
दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे
दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है
चाहत जी का रोग है प्यारे जी को रोक लगाओ क्यूँ
बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं
'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो
ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है
अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही
अँधेरे दिन की सफ़ारत को आए हैं अब के
अक्सर बैठे तन्हाई की ज़ुल्फ़ें हम सुलझाते हैं
अहद-ए-वफ़ा सुबुक-हवा रंग-ए-वफ़ा के साथ साथ
अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है
अब के क़िमार-ए-इश्क़ भी ठहरा एक हुनर दानाई का