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सज्जाद बाक़र रिज़वी Ghazal In Hindi - Best सज्जाद बाक़र रिज़वी Ghazal Shayari & Poems - Darsaal

Ghazals of Sajjad Baqar Rizvi

Ghazals of Sajjad Baqar Rizvi
नामसज्जाद बाक़र रिज़वी
अंग्रेज़ी नामSajjad Baqar Rizvi
जन्म की तारीख1928
मौत की तिथि1993
जन्म स्थानKarachi

ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का

ज़हर इन के हैं मिरे देखे हुए भाले हुए

ज़बाँ को ज़ाइका-ए-शेर-ए-तर नहीं मिलता

यही सुनते आए हैं हम-नशीं कभी अहद-ए-शौक़-ए-कमाल में

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

वो माह-वश है ज़मीं पर नज़र झुकाए हुए

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

उसे मैं तलाश कहाँ करूँ वो उरूज है मैं ज़वाल हूँ

उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था

उन से वो रस्म-ए-मुलाक़ात चली जाती है

तुझे मैं मिलूँ तो कहाँ मिलूँ मिरा तुझ से रब्त मुहाल है

तिरे तग़ाफ़ुल से है शिकायत न अपने मिटने का कोई ग़म है

तेरे शैदा भी हुए इश्क़-ए-तमाशा भी हुए

सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है

शो'ला सा कोई बर्क़-ए-नज़र से नहीं उठता

सर से जुनून-ए-इश्क़ का सौदा निकालिए

राहों के ऊँच-नीच ज़रा देख-भाल के

पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

निखरा ख़िज़ाँ से रंग-ए-बहाराँ है इन दिनों

नवाह-ए-शौक़ में है इक दयार-ए-निकहत-ए-गुल

मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

लफ़्ज़ जब कोई न हाथ आया मआनी के लिए

क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे

क्या इश्क़ का लें नाम हवस आम नहीं है

ख़्वाहिश में सुकूँ की वही शोरिश-तलबी है

कार-ए-वहशत में भी मजबूर है इंसाँ अब तक

कम-ज़र्फ़ भी है पी के बहकता भी बहुत है

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