देख पाई न मिरे साए में चलता साया

देख पाई न मिरे साए में चलता साया

आ गई रात उठाने मिरा ढलता साया

तुम ने अच्छा ही किया छोड़ गए वैसे भी

एक साए से भला कैसे सँभलता साया

मैं वही हूँ मिरा साया भी वही है अब तक

मैं बदलता तो कोई रंग बदलता साया

मैं ने इस वास्ते मुँह कर लिया सूरज की तरफ़

मुझ से देखा न गया आगे निकलता साया

आज भी बैठा हूँ गुम-सुम पस-ए-दीवार-ए-अना

मुझ से लिपटा है तिरी याद का जलता साया

तुझ पे गुज़री ही नहीं वहशत-ए-शाम-ए-हिज्राँ

तू ने देखा ही नहीं पेड़ निगलता साया

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Baluch. is written by Sajjad Baluch. Complete Poem in Hindi by Sajjad Baluch. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.