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उधड़े हुए मल्बूस का परचम सा गया है - सज्जाद बाबर कविता - Darsaal

उधड़े हुए मल्बूस का परचम सा गया है

उधड़े हुए मल्बूस का परचम सा गया है

बाज़ार से फिर आज कोई हम सा गया है

झोंका था मगर छेड़ के गुज़रा है कुछ ऐसे

जैसे तिरे पैकर का कोई ख़म सा गया है

छोड़ूँ कि मिटा डालूँ इसी सोच में गुम हूँ

आईने पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ जम सा गया है

गालों पे शफ़क़ फूलती देखी नहीं कब से

लगता है कि जिस्मों में लहू थम सा गया है

आँखों की तरह दिल भी बराबर रहे कड़वे

इन तंग मकानों में धुआँ जम सा गया है

'सज्जाद' वही आज का शाइ'र है जो पल में

बिजली की तरह कौंद के शबनम सा गया है

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Babar. is written by Sajjad Babar. Complete Poem in Hindi by Sajjad Babar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.