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इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे - सज्जाद बाबर कविता - Darsaal

इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे

इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे

दरिया समुंदरों का शनावर लगा मुझे

मुझ को ख़ला के पार से आती है इक सदा

ऐ रहरव-ए-ख़याल ज़रा पर लगा मुझे

ये और बात मैं ने खंगाला इन्हें बहुत

इन पानियों से डर है बराबर लगा मुझे

ज़ख़्मी उफ़ुक़ धुएँ की कमंद ऊँघते दरख़्त

मंज़र की ज़द में आ के बड़ा डर लगा मुझे

वो दिन कहाँ कि उस को सर-ए-शाम देख लूँ

पिछले पहर का चाँद मुक़द्दर लगा मुझे

उस की जबीं पे देखा तो 'सज्जाद' क्या कहूँ

धब्बा भी रौशनी का समुंदर लगा मुझे

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Babar. is written by Sajjad Babar. Complete Poem in Hindi by Sajjad Babar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.