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भटकी है उजालों में नज़र शाम से पहले - सज्जाद बाबर कविता - Darsaal

भटकी है उजालों में नज़र शाम से पहले

भटकी है उजालों में नज़र शाम से पहले

ये शाम ढले का सा असर शाम से पहले

सकते में सिसकते हुए ताबूत खुलेंगे

अच्छा है निकल जाए ये डर शाम से पहले

वो रज़मिया पढ़ते हैं वो उक्साते हैं मुझ को

जाती हुई किरनों के भँवर शाम से पहले

मैं टीले पे बैठा तो सुनी शहर की सिसकी

देखे मिरे आँगन मिरे घर शाम से पहले

ऐ सुब्ह के तारे की ज़िया ओस की ठंडक

इक रोज़ मिरी छत पे उतर शाम से पहले

इस बार शब-ए-चार-दहुम कुछ तो परखना

फिर काट न देना मिरे पर शाम से पहले

वो क़ुमक़ुमे बाज़ार के मुझ से हैं शनासा

उस सम्त भी जाता हूँ मगर शाम से पहले

मैं दर्द के क़स्बे में बहुत देर से पहुँचा

बिक जाते हैं सब ताज़ा समर शाम से पहले

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Babar. is written by Sajjad Babar. Complete Poem in Hindi by Sajjad Babar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.