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बनते रहे हैं दिल में अजब गर्द-बाद से - सज्जाद बाबर कविता - Darsaal

बनते रहे हैं दिल में अजब गर्द-बाद से

बनते रहे हैं दिल में अजब गर्द-बाद से

रंगों को आज़मा न सके ए'तिमाद से

ये और बात आबले होंटों पे पड़ गए

दहलीज़ चूम ली है मगर ए'तिक़ाद से

बरसों की बे-ज़बान थकावट लिपट गई

जब शहर-ए-दिल में लौट के आए जिहाद से

सरसों की चाँदनी से बरहना दरख़्त तक

हर शय की दिलकशी निखर आई तज़ाद से

कुछ ख़ुश-दहन रफ़ीक़ कहीं बीच बीच में

मेरा भी ज़िक्र करते रहे हैं इनाद से

फिर आज एक शक्ल तराशी है सोच की

दिल की गुफा में हर्फ़ के कच्चे मवाद से

'सज्जाद' कोई हीला कि लौ दे उठे ये दिल

दम घुट रहा है ख़ून के इस इंजिमाद से

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In Hindi By Famous Poet Sajjad Babar. is written by Sajjad Babar. Complete Poem in Hindi by Sajjad Babar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.