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वो पल ये घड़ी - साजिदा ज़ैदी कविता - Darsaal

वो पल ये घड़ी

सलमान के नाम

वो पल

जब तुम्हें कोख से जन के

उम्मीद-ओ-इम्काँ का तारा समझ कर

मैं ने आग़ोश में भर लिया था

वो पल

सुर्ख़ कलियों को जब

अपने सीने की धारा से सींचा था

और अपनी ही तिश्नगी का मुदावा किया था

एक नन्हे से चेहरे के

नाज़ुक ख़द्द-ओ-ख़ाल में डूब कर

जब मिरी रूह परवान चढ़ने लगी थी

वो पल

जब मिरी शब गुज़ारी की

मेहनत-कशी में

तुम्हारी नुमू की गुहर-बार आसूदगी थी

वो पल

राहत-ए-बज़्म-ए-मौजूद-ओ-इम्काँ

जब मिरी गोद में सो गई थी

वो पल

जब मिरी आत्मा

और परमात्मा

इक मधुर रूप में ढल गए थे

मेरे आँगन में

मासूम सी रौशनी थी

वो पल

वक़्त की रहगुज़र में

बहुत दूर पीछे कहीं रह गया है

ग़ुबार-ए-सफ़र के धुँदलकों में

नज़रों से ओझल हुआ है

और अब

जब कि तुम आए हो

अपने ही घर में मेहमान बन के

तुम्हें दूर जाना है

मसरूफ़ हो

वक़्त थोड़ा है

आगे मिरी ज़िंदगी की डगर पर

साअत-ए-वापसीं मुंतज़िर है

इस घड़ी

गरचे मेरी घड़ी अपनी रफ़्तार से चल रही है

मगर

मेरी आँखों की सूखी नमी

पुराने किवाड़ों की चौखट में

न जाने क्यूँ

जज़्ब होने लगी है

और

इस घर के दीवार-ओ-दर अपनी अपनी जगह चुप खड़े हैं

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In Hindi By Famous Poet Sajida Zaidi. is written by Sajida Zaidi. Complete Poem in Hindi by Sajida Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.