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तख़्लीक़ शेर - साजिदा ज़ैदी कविता - Darsaal

तख़्लीक़ शेर

बहुत दिनों से उदास नज़रों की रहगुज़र थी

पड़ी थीं सोती उफ़ुक़ की राहें

कि दिल की महफ़िल में

नग़्मा ओ नाला ओ नवा की

अजब सी शोरिश नहीं हुई थी

नज़र उठाई तो दूर धुँदली फ़ज़ाओं में

रौशनी का इक दाएरा सा देखा

लरज़ के ठहरा जो दिल

तख़य्युल ने अपने शहपर फ़ज़ा में खोले

कि जैसे

परवाज़ का सहीफ़ा खुले

तो नीले गगन के असरार जाग उट्ठें

कि जैसे

माह ओ नुजूम की मम्लिकत का रस्ता कोई बता दे

फ़ज़ा से पर्दे कोई उठा दे

कि जैसे

इक बे-कनार सहरा में

मौज-ए-रेग-ए-रवाँ नुक़ूश-ए-नवा बना दे

कि जैसे ताएर-ए-हवा की लहरों पे, जुम्बिश-ए-पर से

दास्तान-ए-वजूद लिख दें

कि जैसे

तारीक शब के दामन में

दस्त-ए-क़ुदरत, चराग़-ए-दिल यक-ब-यक जला दे

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In Hindi By Famous Poet Sajida Zaidi. is written by Sajida Zaidi. Complete Poem in Hindi by Sajida Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.