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हमारी रूह का नग़्मा कहाँ है? - साजिदा ज़ैदी कविता - Darsaal

हमारी रूह का नग़्मा कहाँ है?

वो दर्द-ए-आरज़ू

जो लर्ज़ा-बर-अंदाम था पहनाए आलम में

वो हर्फ़-ए-तिश्नगी

जो नग़मा-बर-लब था दबिस्तान-ए-शब-ए-ग़म में

वो इक दुनिया-ए-ना-पैदा-कराँ थी

आसमाँ की वुसअतें जिस में समाई थीं

बड़े गहरे समुंदर मौजज़न थे कुर्रा-ए-दिल में

जिन्हें इक जुस्तजू-ए-ख़ाम ने ख़ामोश कर डाला

बहुत मुँह ज़ोर मौजें थीं

जिन्हें ख़ुद हम ने पाबंद-ए-सलासिल कर दिया इक दिन

फ़राज़-ए-कोह से आते हुए बेताब दरिया थे

जिन्हें इक दाएरे में रक़्स करना हम ने सिखलाया

तक़ाज़े होश-मंदी के हमारे राहबर निकले

फ़राज़-ए-आरज़ू से हम

नशेब-ए-आफ़ियत में आन निकले

और मआल-ए-रोज़-ओ-शब के बेश ओ कम में गुम हुए

अपनी मता-ए-ख़ुद-निगाही छोड़ आए

इक सुकूत-ए-आहनी हमराह ले आए

मुदावा-ए-अलम कोई नहीं

बज़्म-ए-नशात ओ दर्द-ए-ग़म कोई नहीं

इक हू का आलम है

खड़े हैं साहिल-ए-हस्ती पे हम

जीने के बे-पायाँ बहाने छोड़ आए

इक सुकूत-ए-आहनी हमराह ले आए

हमारी याद के कश्कोल ख़ाली हैं

हमारी रूह का नग़्मा कहाँ है?

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In Hindi By Famous Poet Sajida Zaidi. is written by Sajida Zaidi. Complete Poem in Hindi by Sajida Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.