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दौर उफ़्तादगी - साजिदा ज़ैदी कविता - Darsaal

दौर उफ़्तादगी

नग़्मगी गीत हर्फ़-ओ-नवा

नाला-ए-शौक़ सौत ओ सदा

एक बहरी सियासत के दरबार में

सर-निगूँ पा-ब-ज़ंजीर लाए गए

सारा सीमाब-ए-नक़द-ओ-नज़र

सब तिलिस्मात-ए-हर्फ़-ओ-हुनर

पर्दा-ए-सहर-ओ-असरार से टूट कर

मक़्तल-ए-आरज़ू बन गए

वो तरब-ज़ार-ए-दिल क़स्र-ए-ग़म

रात भर जागती आगही यानी

इक़लीम-ए-जाँ

मशीनों के खंडरात में खो गए

वो जो आहंग-ए-आलम था

ख़्वाबों का मस्कन था और हर्फ़ ओ मआनी की ततहीर था

अपनी बेदारियों की सज़ा काटने के लिए

संग ओ आहन में ढाला गया

सज्दा-ए-हक़

तमन्ना के आफ़ाक़ तक दर्द के क़ाफ़िले

काबा-ए-नूर तक आबला-पाई के सिलसिले

ज़र-ए-मग़रिब की मीज़ान में तुल गए

हम कि इस दश्त में आबला-पा थे सदियों से

इस राह के संग-ए-मील

अपने क़दमों के हमराज़ थे

हम भी इस दौर-ए-उफ़्तादगी में

बस

तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते रह गए

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In Hindi By Famous Poet Sajida Zaidi. is written by Sajida Zaidi. Complete Poem in Hindi by Sajida Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.