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वफ़ा-ओ-मेहर-ओ-अल्ताफ़-ओ-करम थे हम-इनाँ क्या क्या - साजिदा ज़ैदी कविता - Darsaal

वफ़ा-ओ-मेहर-ओ-अल्ताफ़-ओ-करम थे हम-इनाँ क्या क्या

वफ़ा-ओ-मेहर-ओ-अल्ताफ़-ओ-करम थे हम-इनाँ क्या क्या

हुए हैं अपने ही दिल से मगर हम बद-गुमाँ क्या क्या

पर-ए-पर्वाज़ नीला आसमाँ मंज़िल सितारों की

कटे शहपर तो याद आने लगीं जौलानियाँ क्या क्या

ये अपना दिल जो अब आसेब-ए-ख़ामोशी का मस्कन है

कभी गुज़रे थे इस सूनी डगर से कारवाँ क्या क्या

सुकूत-ए-नीम-शब की आहटें और रात का जादू

ये मंज़र साथ ले आया तिरी दिलदारियाँ क्या क्या

जहाँ अहल-ए-नज़र अहल-ए-हुनर की हुक्मरानी थी

वहाँ मिनक़ार-ए-ज़ेर-ए-पर हैं बैठे नुक्ता-दाँ क्या क्या

अब अपने घर का भी अहवाल लब पर ला नहीं सकते

किया करते थे हम अहवाल-ए-आलम का बयाँ क्या क्या

अजब तीरा-शबी से अब रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ ठहरी

हुए निस्याँ के पर्दे में मह-ओ-अंजुम निहाँ क्या क्या

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In Hindi By Famous Poet Sajida Zaidi. is written by Sajida Zaidi. Complete Poem in Hindi by Sajida Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.