समझ में वक़्त का आया करिश्मा
नज़र ख़ुद पर जो डाली है दिनों ब'अद
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दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ
ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम
रंग बिरंगे सपनों जैसी आँखें तेरी
मैं चाहता हूँ कि हर शय यहाँ सँवर जाए
आरज़ूएँ सब ख़ाक हुईं
ज़मीं की आँख ख़ाली है दिनों ब'अद
नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का
नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं
राएगाँ हो रही थी तंहाई
मुंजमिद था लहू रग-ओ-पय में