राएगाँ हो रही थी तंहाई
तेरी यादों का कारोबार किया
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मुंजमिद था लहू रग-ओ-पय में
दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ
नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं
आरज़ूएँ सब ख़ाक हुईं
मैं चाहता हूँ कि हर शय यहाँ सँवर जाए
ऐसी आग फ़लक से बरसेगी इक दिन
रंग बिरंगे सपनों जैसी आँखें तेरी
ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम
ज़मीं की आँख ख़ाली है दिनों ब'अद
आँख से टूट कर गिरी थी नींद