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नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का - साजिद हमीद कविता - Darsaal

नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का

नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का

सलीक़ा है हमें भी ज़िंदगी को देखने का

किसी जलते हुए लम्हे पे अपने होंट रख दो

अगर है शौक़ जामिद ख़ामुशी को देखने का

समाअ'त में खनकती रौशनी से हो गया है

दो-बाला लुत्फ़ मिट्टी की नमी को देखने का

न जाने लौट कर कब आएगा मौसम ख़जिस्ता

तिरी आँखों की शाइस्ता हँसी को देखने का

सुना है शौक़ था उन को हुनर आता नहीं था

सुनहरे ज़ेहन की वारफ़्तगी को देखने का

यक़ीं आता नहीं लेकिन मिला था एक मौक़ा

शगुफ़्ता शहर की बे-मंज़री को देखने का

बड़ा अरमान था 'साजिद' तुम्हें क्या डर गए क्या

शब-ए-ताबाँ हवा की ख़ुद-कुशी को देखने का

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In Hindi By Famous Poet Sajid Hameed. is written by Sajid Hameed. Complete Poem in Hindi by Sajid Hameed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.