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पंक्चुवेशन - साइमा असमा कविता - Darsaal

पंक्चुवेशन

तुम्हें भेजूँ किताब-ए-ज़िंदगी अपनी

ज़रा तरतीब दे देना

जहाँ पर बात मुबहम है जिसे तफ़्सील लाज़िम है

वहाँ पर हाशिया देना

कहीं गर दो मुकम्मल लफ़्ज़ इकट्ठे हो गए हों तो ये क़ुर्बत ग़ैर-फ़ितरी है

ज़रूरी है मुनासिब फ़ासला देना

जहाँ पर ख़त्म होता हो कोई दर्द-आश्ना जुमला

फ़रामोशी का नुक़्ता सब्त कर देना

वहीं पर ख़त्म कर देना

नए औराक़ में ले कर नहीं चलना

अदक़ सी इस्तेलाहें हैं कई जिन को समझने से

मैं क़ासिर आज तक हूँ

फिर बड़े उलझाओ हैं जिन का सिरा अब तक नहीं मिलता

तुम्हें लाज़िम है वहदानी ख़तों में उन का मतलब खोल कर लिखना

मक़ाम ऐसे भी हैं जिन पर क़दम यूँ डगमगाए थे

कि शानों पर रखी सारी इमारत डोल जाती थी

उन्हें वावैन दे देना

कई ख़ुशियों की सतरें थीं

जो ग़म-अंगेज़ पैरों में कहीं मिल-जुल गई हैं

छाँट कर उन को अलग करना

नया उन्वान दे देना

ज़रा कुछ शक्ल बन जाए तो यूँ करना

हवा के हाथ में देने से पहले

इक पुरानी नक़्ल अपने पास रखना

इक मुझे इर्साल कर देना

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In Hindi By Famous Poet Saima Asma. is written by Saima Asma. Complete Poem in Hindi by Saima Asma. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.